गजलें और शायरी >> थोड़ा सा रुमानी हो लें हम थोड़ा सा रुमानी हो लें हमनवाब शाहाबादी
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नवाब शाहाबादी जी के इस संकलन में रचनाकार की रूमानियत और कर्तव्य बोध दोनों साथ चलते हैं...
‘‘गालिब के समकालीन
उस्ताद मोमिन खां
‘मोमिन’ अपने ज़माने के मशहूर हकीम भी थे। अगर नवाब
शाहाबादी
डाक्टर हैं और ख़िदमते ख़ल्क़ से जुड़े हुए हैं तो इसमें हैरत की क्या बात
है। हम कह सकते हैं कि वह एक ऐसे शायर हैं जो वक़्त पड़ने पर सबके काम आते
हैं। जो शख़्स सबके काम आता है उसका मज़हब इंसानियत होता है।
‘नवाब’ शाहाबादी ग़ज़ल की सेक्यूलर रवायत के पासदार हैं। ग़ज़ल की विधा की यह सबसे बड़ी ख़ूबी है। ऐसी मिसाल दुनिया का किसी ज़बान की शायरी में नहीं मिलती, यह ख़ास वजह है कि ग़ज़ल का शेर हर मज़हबो-मिल्लत के मानने वाले इन्सान के दिल को छू जाता है।
नवाब शाहाबादी के यहाँ जामो-मीना भी है और हुस्नो-इश्क़ की रंगीनियाँ भी। वे रवायत का पास भी रखते हैं और जदीदियत के रंग भी छलकाते हैं। नवाब शाहाबादी अपने रंग ढंग के अच्छे और सच्चे शायर हैं।’’
‘नवाब’ शाहाबादी ग़ज़ल की सेक्यूलर रवायत के पासदार हैं। ग़ज़ल की विधा की यह सबसे बड़ी ख़ूबी है। ऐसी मिसाल दुनिया का किसी ज़बान की शायरी में नहीं मिलती, यह ख़ास वजह है कि ग़ज़ल का शेर हर मज़हबो-मिल्लत के मानने वाले इन्सान के दिल को छू जाता है।
नवाब शाहाबादी के यहाँ जामो-मीना भी है और हुस्नो-इश्क़ की रंगीनियाँ भी। वे रवायत का पास भी रखते हैं और जदीदियत के रंग भी छलकाते हैं। नवाब शाहाबादी अपने रंग ढंग के अच्छे और सच्चे शायर हैं।’’
—इब्राहिम ‘अश्क’
‘‘नवाब ने अपने पुरखों
की डगर को खूब निखारा
है। नवाब के यहाँ इश्क की सच्चाइयां मँहकती नज़र आती हैं, और हुस्न की
शोख़ बेरुखी भी। नवाब रदीफ क़फिये को चुस्त रखने से नहीं चूकते, इनमें से
बहुत से अशआर चौंका देते हैं ।
—बेकल उत्साही
डॉ. ए.के. श्रीवास्तव, नवाब
शाहाबादी– मूलतः
चिकित्सक होते हुए भी हिन्दी एवं उर्दू पर समान अधिकार रखने वाले लोकप्रिय
रचनाकार हैं। आपके गीतों और ग़ज़लों की अनेक पुस्तकें ‘पहला
सफ़र’ ‘ये अन्दाज़े-बयां मेरा’
‘अंधेरे से उजाले
तक’ ‘गीतों के गांव में’ ‘प्रेम
लकीरें’
‘कह नवाब कविराय’ पाठकों के बीच लोकप्रियता अर्जित कर
चुकी
हैं। ‘नक्शे सानी’ नाम से आपकी ग़ज़लों का कैसेट भी आ
चुका
है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित ‘नवाब’
शाहाबादी हिन्दी
एवं उर्दू के श्रोताओं में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने पाठकों में।
तल्ख़ी है बहुत ही जीवन में, थोड़ा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपना छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
गम क़ैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गंवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे ज़माना खोलें हम
बनवा के किसी ने ताजमहल, दुनिया को नया पैग़ाम दिया
इन अहदे-वफ़ा की कब्रों से, कुछ देर लिपट के रो ले हम
क्या इसने इनायत की हम पे, जो इसे तवज़्जो हम देते
क्यूँ फ़िक्र कर हम दुनिया की, क्यूँ इसके हक़ में बोले हम
ऐ दर्दे-मुहब्बत हो रुख़सत, दिल दे के उन्हें हम ‘पछताये
जागे हैं बहुत रातों-रातों, कुछ देर सकूँ से सो लें हम
आँखों में अगर आये आँसू, तो ज़ब्त की हद में रहने दे
कहिये तो गिरा कर अश्क़ अपने, कुछ दामन और भिंगो ले हम
है मुँह में ज़ुबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठें हैं मगर
‘नव्वाब’ किसी की महफ़िल में, ये सोचतें हैं क्या बोले हम
***
जब भी पहलू में यार होता है
दिल को हासिल क़रार होता है
उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार-बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले-ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें ज़रा संभल के आप
फूल के पास ख़ार होता है
आजकल क़ूचा-ए-सियासत में
झूठ का कारोबार होता है
भूल बैठे हैं करके वो वादा
और इधर इंतिज़ार होता है
शेख़ चलते तो हैं सूए-काबा
रुख मगर कूए-यार होता है
चंद ग़ज़लों के बाद ऐ ‘नव्वाब’
शायरों में सुमार होता है
***
देने चला है जान का नज़राना देखिये
लिपटा है जाके शम्अ से परवाना देखिये
बादाकशों का रंगे-शरीफ़ाना देखिये
एक बार चल के शेख़ जी मयख़ाना देखिये
मज़हब की इन किताबों ने आख़िर दिया है क्या
एक बार पढ़के प्यार का अफ़साना देखिये
दोनों ही घर ख़ुदा के हैं ऐ शेख़-ए-मोहतरम
एक ही नज़र से काबा-ओ-बुतख़ाना देखिये
बे-पर की लेके बैठे हैं वाइज़ नसीहतें
इक ना समझ का प्यार में समझाना देखिये
वाक़िफ़ है ख़ूब राहे गुज़र से जनाब की
मिल जाये फिर न राह में दीवाना देखिये
मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके-हरीफ़ाना देखिये
‘नव्वाब’ की है प्यास फ़क़त एक घूँट की
कब आये उसके हाथ में पैमाना देखिये
***
मुहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बनाकर के देखो
हो तुम भी तभी तक कि जब तक कि हम हैं
न मानों तो हमको मिटाकर के देखो
कोई मुझपे इल्ज़ाम भरने से पहले
वफ़ायें मेरी आज़मा कर के देखो
ख़ुलूसो, मुहब्बत है क्या चीज़ ज़ाहिद
कभी मयकदे में ये आकर दे देखो
तुम्हें हम तो अपना बनाये हुए हैं
हमें तुम भी अपना बनाकर के देखो
न मिट जाये ग़म तो है ये मेरा ज़िम्मा
मगर शर्त है जाम उठाकर के देखो
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुलाकर दे देखो
सियासत में ‘नवाब’ बाज़ीगरी का
तमाशा क़रीब और जाकर के देखो
***
ख़ुशी छिन गयी दिल लगाने के बाद
बहुत रोये हम मुस्कुराने के बाद
ख़ुदा जाने क्या हश्र होगा हमारा
तेरी बज़्म-से उठके जाने के बाद
नज़र लग न जाये कहीं फिर किसी की
हँसी आयी है एक ज़माने के बाद
करेंगे तुम्हारी तरह हम भी तौबा
मगर ज़ाहिदों जाम उठाने के बाद
किया इतना मजबूर शर्मो-हया ने
झुका लीं निगाहें मिलाने के बाद
अमाँ पायेगी फिर कहाँ बर्क़े सोज़ाँ
मेरा आशियाना जलाने के बाद
***
कुछ रंग तुम अपना छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
गम क़ैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गंवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे ज़माना खोलें हम
बनवा के किसी ने ताजमहल, दुनिया को नया पैग़ाम दिया
इन अहदे-वफ़ा की कब्रों से, कुछ देर लिपट के रो ले हम
क्या इसने इनायत की हम पे, जो इसे तवज़्जो हम देते
क्यूँ फ़िक्र कर हम दुनिया की, क्यूँ इसके हक़ में बोले हम
ऐ दर्दे-मुहब्बत हो रुख़सत, दिल दे के उन्हें हम ‘पछताये
जागे हैं बहुत रातों-रातों, कुछ देर सकूँ से सो लें हम
आँखों में अगर आये आँसू, तो ज़ब्त की हद में रहने दे
कहिये तो गिरा कर अश्क़ अपने, कुछ दामन और भिंगो ले हम
है मुँह में ज़ुबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठें हैं मगर
‘नव्वाब’ किसी की महफ़िल में, ये सोचतें हैं क्या बोले हम
***
जब भी पहलू में यार होता है
दिल को हासिल क़रार होता है
उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार-बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले-ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें ज़रा संभल के आप
फूल के पास ख़ार होता है
आजकल क़ूचा-ए-सियासत में
झूठ का कारोबार होता है
भूल बैठे हैं करके वो वादा
और इधर इंतिज़ार होता है
शेख़ चलते तो हैं सूए-काबा
रुख मगर कूए-यार होता है
चंद ग़ज़लों के बाद ऐ ‘नव्वाब’
शायरों में सुमार होता है
***
देने चला है जान का नज़राना देखिये
लिपटा है जाके शम्अ से परवाना देखिये
बादाकशों का रंगे-शरीफ़ाना देखिये
एक बार चल के शेख़ जी मयख़ाना देखिये
मज़हब की इन किताबों ने आख़िर दिया है क्या
एक बार पढ़के प्यार का अफ़साना देखिये
दोनों ही घर ख़ुदा के हैं ऐ शेख़-ए-मोहतरम
एक ही नज़र से काबा-ओ-बुतख़ाना देखिये
बे-पर की लेके बैठे हैं वाइज़ नसीहतें
इक ना समझ का प्यार में समझाना देखिये
वाक़िफ़ है ख़ूब राहे गुज़र से जनाब की
मिल जाये फिर न राह में दीवाना देखिये
मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके-हरीफ़ाना देखिये
‘नव्वाब’ की है प्यास फ़क़त एक घूँट की
कब आये उसके हाथ में पैमाना देखिये
***
मुहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बनाकर के देखो
हो तुम भी तभी तक कि जब तक कि हम हैं
न मानों तो हमको मिटाकर के देखो
कोई मुझपे इल्ज़ाम भरने से पहले
वफ़ायें मेरी आज़मा कर के देखो
ख़ुलूसो, मुहब्बत है क्या चीज़ ज़ाहिद
कभी मयकदे में ये आकर दे देखो
तुम्हें हम तो अपना बनाये हुए हैं
हमें तुम भी अपना बनाकर के देखो
न मिट जाये ग़म तो है ये मेरा ज़िम्मा
मगर शर्त है जाम उठाकर के देखो
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुलाकर दे देखो
सियासत में ‘नवाब’ बाज़ीगरी का
तमाशा क़रीब और जाकर के देखो
***
ख़ुशी छिन गयी दिल लगाने के बाद
बहुत रोये हम मुस्कुराने के बाद
ख़ुदा जाने क्या हश्र होगा हमारा
तेरी बज़्म-से उठके जाने के बाद
नज़र लग न जाये कहीं फिर किसी की
हँसी आयी है एक ज़माने के बाद
करेंगे तुम्हारी तरह हम भी तौबा
मगर ज़ाहिदों जाम उठाने के बाद
किया इतना मजबूर शर्मो-हया ने
झुका लीं निगाहें मिलाने के बाद
अमाँ पायेगी फिर कहाँ बर्क़े सोज़ाँ
मेरा आशियाना जलाने के बाद
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